Kerala vs Assam, two worlds, one heartbeat केरल बनाम असम, दो दुनिया, एक धड़कन



आपने कभी सोचा है, 

भारत की खूबसूरती किसमें है? मेरे ख़्याल से, इसकी खूबसूरती उसकी विविधता में छुपी है। ऐसे ही एक दिन मन में ख्याल आया – केरल और असम को लेकर। दोनों ही राज्य देश के दो सिरों पर बसे हैं, एक पश्चिमी तट पर और दूसरा पूर्वोत्तर में। दोनों ही हरियाली से भरे, चाय के शौकीन, और अपनी अलग संस्कृति के धनी। फिर भी, इनके बीच का अंतर और समानता दोनों ही मन को मोह लेते हैं।


केरल: जहाँ पानी गीत गाता है


केरल को 'भगवान का अपना देश' कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। वहाँ की यात्रा मेरे लिए सपने जैसी थी। केरल में प्रकृति कलाकार की तरह है। वहाँ के बैकवाटर्स शांत और गहरे हैं, मानो समय की धारा वहीं रुक गई हो। नारियल के पेड़ों की सरसराहट, हल्की लहरों की आवाज़, एक तरह का संगीत रच देती है। केरल की खुशबू याद कीजिए – नारियल के तेल और मसालों और धरती की सोंधी सुगंध का मेल।

 वहाँ का भोजन, जैसे साधारण दिखने वाला 'साध्या' (केले के पत्ते पर परोसा जाने वाला शाकाहारी भोजन), स्वाद में इतना समृद्ध है कि वह पेट को ही नहीं, आत्मा को भी तृप्त कर देता है।


लेकिन केरल की सबसे बड़ी पहचान है वहाँ के लोग और उनकी शिक्षा। देश में सबसे ज़्यादा साक्षरता दर केरल की ही है। यहाँ की औरतें साड़ी पहने, सिर पर जूड़ा बनाए, न सिर्फ घर चलाती हैं बल्कि समाज की दिशा भी तय करती हैं। यहाँ का कला-संस्कृति का सफर भी लाजवाब है। कथकली नृत्य की थिरकन और मोहिनीअट्टम की कोमलता देखकर लगता है मानो कहानी बिना शब्दों के कही जा रही हो।

असम: जहाँ चाय की प्याली में जादू है

वहीं दूसरी तरफ असम है. असम की यात्रा एक अलग ही अनुभव है. ब्रह्मपुत्र नदी यहाँ की जीवनरेखा है, जो कभी शांत और कभी उग्र – ठीक असमिया लोगों के स्वभाव की तरह. असम पहुँचते ही सबसे पहले नज़र आती हैं हरी-भरी चाय की बग़ीचें, जो पहाड़ियों को हरे कालीन की तरह ढके रहती हैं. सुबह-सुबह चाय तोड़ने वाली महिलाओं की टोली और हवा में चाय की महक. यह नज़ारा दिल को छू लेता है.


असम की संस्कृति उत्सवों और जीवटता से भरी है। बिहू न सिर्फ एक नृत्य है, बल्कि जीवन का एक तरीका है। ढोल, पेपा (बाँसुरी) और गायन की धुन पर युवक-युवतियों का नृत्य देखकर लगता है कि खुशी इतनी सरल और संक्रामक भी हो सकती है। असम की रसोई में मछली और चावल का राज है। 'मासोर तेंगा' (खट्टी मछली) का स्वाद अनोखा है, जो ज़ुबान पर रह जाता है। और कमाल की बात यह है कि यहाँ की मुस्कान में एक ऐसी गर्मजोशी है, जो सर्दियों में भी दिल को गर्म कर देती है।


दो धड़कनें, एक दिल


अब सवाल यह है कि इन दोनों में तुलना कैसे की जाए? केरल की शांति और असम का उल्लास? केरल का बैकवाटर और असम का ब्रह्मपुत्र? दोनों ही पानी से जुड़े हैं, लेकिन अलग अंदाज़ में। केरल की प्रगतिशील सोच और असम की सहज सरलता? दोनों ही अपनी-अपनी जगह बेहतरीन हैं।


एक बात जो दोनों को जोड़ती है, वह है प्रकृति के प्रति उनका प्यार और उनकी आतिथ्य-सेवा। केरल का आयुर्वेदिक उपचार हो या असम का 'गमोसा' (पारंपरिक स्कार्फ) भेंट करने का रिवाज़, दोनों ही कहते हैं – "अतिथि देवो भव:"। दोनों ही राज्यों ने अपनी पहचान को दुनिया के सामने रखा है, बिना शोर मचाए, बस अपने काम से।


Finally. सच पूछिए तो, केरल और असम की तुलना करना वैसा ही है जैसे किसी से पूछना कि सुबह की कोयल की आवाज़ बेहतर है या शाम की सूरज की लालिमा? दोनों का अपना-अपना सौंदर्य और महत्व है। केरल हमें शांति और ज्ञान का पाठ सिखाता है, तो असम सिखाता है कि सादगी और उत्सव में कैसे जिया जाता है। तो अगली बार जब आप इनमें से किसी एक को चुनने की सोचें, तब एक पल रुकिए। 

बेहतर यही होगा कि आप दोनों को ही एक बार जीवन में अनुभव करें। केरल की नौका में बैठकर शांति का अनुभव करें और असम की चाय बग़ीचों में खुशियों का स्वाद चखें। क्योंकि ये दोनों ही राज्य हमें यह एहसास दिलाते हैं कि भारत की ताकत उसकी एकता में नहीं, बल्कि उसकी इस खूबसूरत और रंगीन विविधता में है। और इस विविधता को महसूस करने के लिए हमें बस अपना दिल खोलने की ज़रूरत है।

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