Humayun Kabir — पश्चिम बंगाल के विधायक — और Babri Masjid की याद में,


 Humayun Kabir: एक राजनीतिक सफर


Humayun Kabir आज “MLA” यानी विधायिका के सदस्य हैं — वे पश्चिम बंगाल की विधानसभा में Trinamool Congress (TMC) से 2021 में जीतकर आये थे, और उनका निर्वाचन क्षेत्र है Bharatpur. 

उनका राजनीतिक सफर हموश मौन नहीं रहा — कांग्रेस से शुरू हुआ, फिर BJP, फिर वापस TMC; और विवादों से अलग-थलग भी नहीं रहे। 


लेकिन हाल ही में उन्होंने एक ऐसा बयान दे दिया जिसने उनकी राजनीतिक और सामाजिक पारी को बीच में भारी तूफान में बदल दिया।


 Babri Masjid का बचपन, उसकी याद और Kabir की चुनौती


हम सब जानते हैं कि Babri Masjid — एक संवेदनशील इतिहास के प्रतीक — भारत में communal घटनाओं, धार्मिक विवाद, राजनीति और भावनाओं का काफी लम्बा इतिहास रखती है।


अब सोचिए — कोई विधायक अचानक कह दे कि “मैं Murshidabad में Babri-style मस्जिद बनाऊँगा” — वो भी उसी दिन, जिस दिन पुरानी Babri मस्जिद गिराई गयी थी। हुआ भी ऐसा ही। Humayun Kabir ने घोषणा की कि 6 दिसंबर 2025 को Beldanga (Murshidabad) में Babri Masjid की तरह मस्जिद की नींव रखी जाएगी। 


उनका कहना था कि ये निजी ट्रस्ट के ज़रिए होगा — पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं। 


लेकिन यह बयान कुछ लोगों के लिए सिर्फ एक धार्मिक आग्रह नहीं था — बल्कि एक राजनीतिक ज़ुबानी जंग की शुरुआत था।


 विवाद, सस्पेंशन और राजनीति का झटका


उनकी इस मुहिम से पार्टी नेतृत्व — खासकर Kolkata के महापौर और TMC के वरिष्ठ नेता Firhad Hakim — नाराज़ हो गए। उन्होंने कहा कि यह एक जानबूझकर “communal politics” है। 


और फिर — TMC ने उन्हें पार्टी से सस्पेंड कर दिया। अब उन्हें पार्टी से अलग माना गया है। 


लेकिन Humayun Kabir न सिर्फ इस फैसले को झेलने को तैयार दिखे, बल्कि उन्होंने कहा कि वो अपनी मस्जिद बनाने के अपने निर्णय से पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अगर ज़रूरत पड़ी — तो वे अपनी पार्टी बनाएँगे और 2026 के चुनाव लड़ेंगे। 


उनके सुर में एक झिझक नहीं थी — जैसे वो मान चुके हों कि उन्होंने साहस से कदम उठाया है, और अब दुश्मन चाहे जितना रोके, वो डटकर खड़े रहेंगे।


 समाज, कानून और तल्ख़ हकीकतें


लेकिन सवाल यह उठता है — क्या किसी एक आदमी का यह फैसला केवल उसकी निजी दोस्ती या धार्मिक आस्था है? या वो जानता है कि ये कदम किसी हिस्से को मसीहा महसूस करवाएगा, और किसी हिस्से की भावनाओं पर तलवार घूमेगी?


दरअसल, समाज जिस पिघले हुए बर्तनों की तरह है — उसमें उस तलवार की लकीर बहुत गहरी जाती है। जब कोई नेता धार्मिक भावनाओं से जुड़ा बयान देता है, तो यह सिर्फ बयान नहीं रहता — यह राजनीति में बहाव लाता है।


कानूनी रूप से भी, इस मसले पर शिकायत और PIL दायर हो चुकी है — उनकी मस्जिद योजना को रोकने की मांग की गई है। लोगों का कहना है कि उनका यह बयान “hate speech” हो सकता है, और इससे सार्वजनिक शांति भंग हो सकती है। 


इधर, उनके खुद के साथी नेताओं ने खुलकर कहा कि यह उनकी निजी राय है — पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं। 


 हमारी सोच: धर्म, राजनीति और ज़िम्मेदारी


मैं, एक आम इंसान की तरह, इस पूरे घटनाक्रम को देखकर थोड़ा बेचैन हो जाता हूँ।


क्यों हमेशा धर्म और राजनीति एक साथ आ जाते हैं? क्यों हमारे नेताओं को लगता है कि धार्मिक पहचान से वोट मिलने की राह आसान हो जाएगी?


अगर किसी ने सच में मस्जिद बनानी है — क्या उसने उस इलाके की तसल्ली की है, मुसलमान और हिन्दू दोनों में शांति-सहमति ली है, और सबको एक साथ रखते हुए फैसला किया है? या ये कदम सिर्फ polarisation, वोट बैंक और पॉपुलरिटी के लिए है?


हमारा भारत — विविधता, सहिष्णुता और भाईचारे का देश है। यहाँ धर्म-विचार, भाषा-संस्कृति जितनी विविध हैं, उतना ही हमारा प्यार, हमारा सम्मान, हमारा एक दूसरे के लिए दायित्व होना चाहिए।


जब कोई नेता ऐसी “बोल्ड” बात कहता है — तो सिर्फ अपने लिए नहीं, पूरे समाज की जिम्मेदारी बन जाती है कि वो देखें — क्या वह कदम शांतिपूर्ण, समझदारी भरा है? या सिर्फ उथल-पुथल लाने वाला?


 मेरी आवाज: सोचो — समझो — फिर बोलो / करो


अगर मैं आपसे कहूँ — हर वोटर, हर नागरिक अब यह देखे कि जो नेता “धर्म” को हथियार बना कर पैसों, वोटों या सत्ता की ओर कदम बढ़ा रहा है — उसके पीछे सिर्फ वोट बैंक तो नहीं है?


हमारे लिए बेहतर होगा कि हम चुनें — ऐसे नेता, जो हमें बाँटने की बजाय, जोड़ने का काम करें। जो हमारे बच्चों के लिए — हिन्दू हो या मुसलमान — एक बराबर, सुरक्षित और सम्मानित भविष्य देखें।


और अगर किसी को मस्जिद, मंदिर, चर्च बनानी हो — तो पहले पूछो — क्या ये सिर्फ पत्थर और ईंटें हैं? या हमारी सोच — हमारी समझ — हमारी इंसानियत की ईंटें हैं?


हो सकता है कि मुझे Humayun Kabir के फैसले से असहमत हो — लेकिन मैं मानता हूँ कि हर इंसान को अपनी आवाज़ रखने का अधिकार है। मैं बस यही चाहता हूँ कि उसकी आवाज़ — किसी विवाद, नफरत या डर से न भीगे; बल्कि भरोसे, सम्मान और इंसानियत से सुनाई दे।






एक टिप्पणी भेजें

You have any questions plz tell me

और नया पुराने