परिचय
बानू मुश्ताक ने 20 मई 2025 को अपनी लघुकथा संग्रह "हार्ट लैंप" के लिए प्रतिष्ठित इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया। वह यह पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ भाषा की लेखिका बनीं, साथ ही यह पहली लघुकथा संग्रह भी थी जिसे यह सम्मान मिला 159। 77 वर्षीय मुश्ताक ने यह पुरस्कार अपनी अनुवादक दीपा भास्ती के साथ साझा किया, जिन्होंने इस कृति को कन्नड़ से अंग्रेजी में अनूदित किया था 57।
प्रमुख बिंदु
ऐतिहासिक उपलब्धि: बानू मुश्ताक इंटरनेशनल बुकर जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका और दूसरी भारतीय लेखिका बनीं (2022 में गीतांजलि श्री के बाद) 17।
पुरस्कार राशि: £50,000 की पुरस्कार राशि लेखिका और अनुवादक के बीच समान रूप से विभाजित 9।
भाषाई मील का पत्थर: यह कन्नड़ साहित्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि, जिसने वैश्विक मंच पर इसकी पहचान बनाई 6।
विवादास्पद विषय: मुश्ताक के लेखन ने धार्मिक कट्टरता और पितृसत्तात्मक समाज की आलोचना करते हुए कई बार विवाद खड़े किए 13।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बानू मुश्ताक का जन्म 1948 में कर्नाटक के हसन में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था 3। उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे और माँ ने मिडिल स्कूल तक पढ़ाई की थी 4। 8 साल की उम्र में उनके पिता ने उन्हें कन्नड़ माध्यम के मिशनरी स्कूल में दाखिल कराया, जहाँ उन्हें 6 महीने में कन्नड़ सीखने की शर्त रखी गई थी 34। आश्चर्यजनक रूप से, बानू ने कुछ ही दिनों में कन्नड़ लिखना शुरू कर दिया और यही भाषा आगे चलकर उनकी साहित्यिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनी 13।
व्यक्तिगत संघर्ष
प्रेम विवाह: 26 साल की उम्र में अपनी पसंद से विवाह किया, लेकिन शादी के बाद उन्हें बुरका पहनने और घरेलू कार्यों तक सीमित होने के लिए मजबूर किया गया 15।
प्रसवोत्तर अवसाद: 29 साल की उम्र में माँ बनने के बाद अवसाद से जूझीं, जिसने उन्हें लेखन की ओर मोड़ा 35।
आत्महत्या का प्रयास: एक बार निराशा में उन्होंने खुद को आग लगाने की कोशिश की, लेकिन उनके पति ने समय रहते रोक दिया 15।
साहित्यिक यात्रा
बानू मुश्ताक ने अपना पहला लेखन स्कूल के दिनों में ही शुरू कर दिया था। 1974 में, शादी के एक साल बाद, उनकी पहली कहानी 'प्रजामत' पत्रिका में प्रकाशित हुई 4। वह कन्नड़ साहित्य की बंदाया (विद्रोह) आंदोलन से जुड़ीं, जो सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए काम करता था 4।
प्रमुख रचनाएँ
हार्ट लैंप (2025): 12 लघुकथाओं का संग्रह, जो 1990 से 2023 के बीच लिखी गईं 18।
हसीना एंड अदर स्टोरीज (2024): अंग्रेजी में अनूदित कहानियों का संग्रह, जिसने PEN अनुवाद पुरस्कार जीता 13।
बेंकी माले (1999): इस संग्रह के प्रकाशन के बाद उन्हें मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश के अधिकार पर दिए गए बयान के लिए धमकियाँ मिलीं 4।
करी नगरगलु: इस कहानी पर 2003 में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म 'हसीना' बनी 35।
सामाजिक सक्रियता
महिला अधिकार: मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश के अधिकार के लिए आवाज उठाई, जिसके लिए 2000 में उनके खिलाफ फतवा जारी किया गया और एक व्यक्ति ने उन पर चाकू से हमला भी किया 14।
हिजाब विवाद: कर्नाटक में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने के अधिकार का समर्थन किया 3।
बाबा बुदनगिरी विवाद: चिकमगलूर जिले में एक साझा तीर्थ स्थल पर मुसलमानों के जाने पर रोक लगाने के प्रयासों के खिलाफ कोमु सौहार्द वेदिके के साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन किया 3।
पुरस्कार और सम्मान
कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999) 34
दाना चिंतामणि अत्तिमब्बे पुरस्कार 3
PEN अंग्रेजी अनुवाद पुरस्कार (2024) - हसीना एंड अदर स्टोरीज के लिए 13
इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार (2025) - हार्ट लैंप के लिए 19
लेखन शैली और विषय-वस्तु
बानू मुश्ताक के लेखन की मुख्य विशेषताएँ:
यथार्थवादी चित्रण: दक्षिण भारत के मुस्लिम समुदायों में महिलाओं के दैनिक जीवन का सूक्ष्म अवलोकन 8।
महिला पात्र: उनकी कहानियों की नायिकाएँ धर्म, समाज और राजनीति द्वारा थोपी गई अमानवीय क्रूरता का सामना करती हैं 8।
भाषाई समृद्धि: कन्नड़ के साथ-साथ उर्दू और अरबी शब्दों का प्रयोग, जो बातचीत की प्रामाणिकता बनाए रखता है 9।
सामाजिक आलोचना: जाति, वर्ग और धर्म की विभाजन रेखाओं के माध्यम से समकालीन समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अत्याचार और अन्याय को उजागर करना 8।
विवाद और चुनौतियाँ
बानू मुश्ताक का जीवन और लेखन कभी भी विवादों से दूर नहीं रहा:
धार्मिक कट्टरपंथियों का विरोध: महिलाओं के मस्जिदों में प्रवेश के अधिकार पर अपने विचार रखने के बाद उन्हें धमकियाँ मिलीं और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा 14।
जानलेवा हमला: एक व्यक्ति ने उन पर चाकू से हमला किया, जिसे उनके पति ने विफल कर दिया 4।
फतवा: 2000 में उनके खिलाफ फतवा जारी किया गया 3।
साहित्यिक आलोचना: कुछ आलोचकों ने हार्ट लैंप को "अधिक कसा हुआ और साफ होना चाहिए था" कहकर आलोचना की 8।
इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार और प्रतिक्रियाएँ
हार्ट लैंप के इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीतने पर प्रमुख प्रतिक्रियाएँ:
बानू मुश्ताक: "यह क्षण ऐसा लगता है जैसे हज़ार जुगनू एक ही आकाश को रोशन कर रहे हों - संक्षिप्त, शानदार और पूरी तरह सामूहिक" 5।
दीपा भास्ती (अनुवादक): "मेरी सुंदर भाषा के लिए यह कितनी सुंदर जीत है" 5।
मैक्स पोर्टर (निर्णायक मंडल के अध्यक्ष): "अंग्रेजी पाठकों के लिए यह कुछ वास्तव में नया है... एक क्रांतिकारी अनुवाद जो भाषा को झकझोरता है" 9।
फियामेटा रोको (इंटरनेशनल बुकर प्राइज प्रशासक): "हार्ट लैंप को दुनिया भर के पुरुषों और महिलाओं द्वारा पढ़ा जाना चाहिए" 9।
वर्तमान गतिविधियाँ और भविष्य की योजनाएँ
सातवाँ लघुकथा संग्रह: वर्तमान में वह अपना सातवाँ लघुकथा संग्रह लिख रही हैं, जो वर्तमान समय में सेट होगा 4।
आत्मकथा: आधी पूरी हुई आत्मकथा पर काम जारी है 4।
सामाजिक कार्य: महिलाओं और हाशिए के समुदायों के अधिकारों के लिए काम करना जारी रखा 3।
निष्कर्ष
बानू मुश्ताक का जीवन और साहित्य सामाजिक परिवर्तन और व्यक्तिगत साहस की एक अनूठी मिसाल है। एक ऐसी महिला जिसने पितृसत्तात्मक समाज की सीमाओं को चुनौती दी, धार्मिक कट्टरपंथियों का सामना किया और अंततः वैश्विक साहित्यिक मंच पर कन्नड़ भाषा को गौरवान्वित किया। हार्ट लैंप की कहानियाँ न केवल दक्षिण भारत की मुस्लिम महिलाओं के संघर्षों को दर्शाती हैं, बल्कि यह साबित करती हैं कि साहित्य सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली माध्यम हो सकता है। 77 वर्ष की उम्र में यह पुरस्कार जीतकर बानू मुश्ताक ने साबित कर दिया कि सच्ची प्रतिभा और समर्पण कभी भी उम्र या परिस्थितियों से पराजित नहीं होते।
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