कभी-कभी लाइव मैच देखते हुए, जब कोई खिलाड़ी कोई असंभव-सा शॉट लगाता है, तो उस पल में स्टेडियम का शोर, कमेंट्री की उत्तेजना से परे एक खास आवाज़ सुनाई देती है. वो आवाज़ होती है एक सपने के पूरा होने की. और हार्दिक पंड्या के सफर में, यह आवाज कभी गुजरात के एक छोटे से फ्लैट में बिस्किट के पैकेट खोलने की रस्साहट से शुरू हुई, तो कभी लंदन के लार्ड्स स्टेडियम में छक्के की गूंज से.
उसकी कहानी सिर्फ क्रिकेट की नहीं है। यह एक ऐसे लड़के की कहानी है जिसने 'पर्याप्त नहीं है' की परिभाषा को, अपने दम पर, 'बहुत कुछ है' में बदल दिया। वो लड़का जो बचपन में ट्रेन के सफर में पिता के साथ क्रिकेट खेलने मुंबई आया करता था। जिसके पास इतने पैसे नहीं थे कि अच्छे जूते खरीद सके, जिसकी वजह से उसे एक ही जूते से बल्लेबाजी और गेंदबाजी, दोनों करनी पड़ती थी। उस जूते के तले घिस जाने की कहानी, आज उनकी जिंदादिली की नींव है।
हार्दिक को देखकर कभी ऐसा नहीं लगता कि वो कोई 'स्टार' बनने की कोशिश कर रहे हैं। वो तो बस वही हैं, जो वो थे। थोड़े शरारती, बेहद आत्मविश्वासी, और जीवन को फुल्टू जीने वाले। उनका स्वैग सिर्फ फैशन स्टेटमेंट नहीं है; यह एक घोषणा है कि "मैं वो खेलूंगा जैसा मैं हूं." यही उनकी ताकत भी है और चुनौती भी। क्रिकेट, जो अक्सर परंपराओं और औपचारिकताओं का खेल रहा है, उसमें हार्दिक एक ताज़ी हवा के झोंके की तरह आए।
उनकी बल्लेबाजी में वो बेतरतीब ढंग से ताकतवर शॉट्स, उनकी गेंदबाजी में वो क्रुसियल विकेट लेने की क्षमता, और फील्डिंग में वो ऊर्जा. ये सब मिलकर एक 'पैकेज' बनाते हैं जो भारत को बहुत दुर्लभ मिला है।
लेकिन इस चमकदार पैकेज के अंदर का सफर टूटे हुए कांच से कम नहीं रहा। 2017 का वो चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल याद कीजिए। जब टीम को एक मुश्किल जगह से जिताने की ज़िम्मेदारी उन पर थी, और उन्होंने नाबाद 76 रन बनाकर यह दिखा दिया कि वो बड़े मौकों के बड़े खिलाड़ी हैं। फिर 2019 का विश्व कप, जहाँ उनकी पीठ की चोट ने उन्हें बैठने पर मजबूर कर दिया।
एक खिलाड़ी के लिए, जिसकी पहचान ही एथलेटिकिज्म और ऊर्जा से है, वो दर्द क्या रहा होगा, यह हम सिर्फ अंदाज़ा लगा सकते हैं। उन्होंने कहा भी था- "मैं चल भी नहीं पा रहा था।" शब्द सुनने में साधारण लगते हैं, लेकिन जिसने कभी अपने शरीर से कुछ करने की उम्मीद छोड़ दी हो, वही समझ सकता है कि यह किस मानसिक यातना से गुजरने का एहसास है।
और फिर वापसी! कैसी वापसी! 2022 और 2023 का आईपीएल, जहाँ उन्होंने गुजरात टाइटंस को कप्तान बनाकर पहले सीजन में ही चैंपियन बना दिया। यह सिर्फ ट्रॉफी जीतने की बात नहीं थी। यह नेतृत्व, परिपक्वता और एक जिम्मेदार खिलाड़ी के तौर पर अपनी छवि को पुख्ता करने की कहानी थी।
लेकिन हार्दिक का सफर सीधी रेखा नहीं है। 2024 में मुंबई इंडियंस की कप्तानी मिलना और फिर उस पर होने वाली अभूतपूर्व प्रतिक्रिया. यह उनकी जिंदगी का सबसे कठिन दौर रहा होगा। हर स्टेडियम में सीटीयों का स्वर, सोशल मीडिया पर अथाह आलोचना. एक इंसान के तौर पर इसे झेल पाना कितना मुश्किल होगा? पर वो मैदान पर उतरे।
चेहरे पर एक अलग तरह की गंभीरता थी। शायद वो समझ रहे थे कि अब सिर्फ बल्ले या गेंद से नहीं, बल्कि अपने धैर्य से भी खेलना है।
उनकी भावनाएं उनके चेहरे पर साफ झलकती हैं। जीत पर झूम उठना, हार पर आंखें नम होना, या फिर किसी बात पर बौखला जाना – वो एक 'प्रोडक्ट' नहीं, एक 'इंसान' दिखते हैं। और शायद यही वजह है कि लोग उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं। वो हम सब की तरह ही हैं – अपूर्ण, संवेदनशील, गलतियाँ करने वाले, लेकिन हर बार उठ खड़े होने का हौसला रखने वाले।
हार्दिक का बल्ला अक्सर बात करता है- गलियारे में मारी गई छहरें सिर्फ रन नहीं जोड़तीं, बल्कि एक संदेश देती हैं: "देखो, मैं यह कर सकता हूं." और उनकी गेंदबाजी उस जुनून की कहानी कहती है जो हर कठिन समय के बाद वापसी के लिए जिद पैदा करती है। आगे का सफर क्या लाएगा,
यह तो समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है-हार्दिक पंड्या की कहानी अभी पूरी नहीं हुई है। यह अभी लिखी जा रही है। हर मैच के साथ, हर पारी के साथ, वो इस कहानी का एक नया पन्ना जोड़ रहे हैं।
और हम सब, बस एक आशा और दुआ के साथ, उसे पढ़ते जा रहे हैं। क्योंकि यह कहानी सिर्फ उनकी नहीं है; यह उन सबकी है जो संघर्ष से डरते नहीं, जो अपने अंदाज़ से जीते हैं, और जो यह मानते हैं कि चोटिल होकर गिरने के बाद भी, उठकर खड़े होने का मज़ा ही कुछ और है।
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